Jabalpur/जबलपुर/इतिहास में प्रचलित पंचांग के अनुसार महा महारथी महाराणा प्रताप की जयंती 9 मई को है परंतु तिथि के अनुसार इस वर्ष 22 मई को मनाई जाएगी। मुगलों के लिए यमराज और हिंदुत्व के सूर्य महाराणा की जयंती के पूर्व आज हल्दीघाटी के युद्ध के एक महायोद्धा-विश्व के सर्वश्रेष्ठ हाथी-महारथी रामप्रसाद की याद आ गई। भारतवर्ष सदा से वीरों और वीरांगनाओं की पवित्र भूमि रही है, जिसमें विभिन्न प्राणियों ने भी अपनी वीरता के जौहर दिखाए हैं। चतुष्पादों में राणा कर्ण सिंह का घोड़ा शुभ्रक, रानी दुर्गावती का हाथी सरमन, महाराणा प्रताप का हाथी रामप्रसाद और घोड़ा चेतक प्रसिद्ध हैं। यूं तो रामप्रसाद ने महाराणा प्रताप के साथ अनेक युद्ध लड़े थे, परंतु हल्दीघाटी का युद्ध रामप्रसाद वीरता का चरमोत्कर्ष था, जो चिरकाल तक अविस्मरणीय रहेगा।
18 जून को प्रातः हल्दीघाटी में भयंकर मोर्चा खुल गया, महाराणा प्रताप के अग्रिम दस्ते ने मुगलों को खमनौर तक खदेड़ा मुगलों में अफरा-तफरी मच गई। पुन:शहजादा सलीम, मान सिंह, सैय्यद बारहा और आसफ खान ने मोर्चा संभाला। शहजादा सलीम और मान सिंह की रक्षार्थ 20 हाथियों ने घेराबंदी कर रखी थी। घेराबंदी तोड़ने के लिए राणा प्रताप ने रामप्रसाद को आगे बढ़ाया अपरान्ह लगभग 12.30 बजे हाथियों का घमासान युद्ध हुआ। शस्त्रों से सुसज्जित रामप्रसाद ने भयंकर रौद्र रुप धारण किया अकबर के 13 हाथियों को अकेले रामप्रसाद ने मार डाला और 7 हाथियों को मोर्चे से हटा दिया गया। इस तरह राणा प्रताप के लिए रामप्रसाद ने शहजादा सलीम और मानसिंह तक पहुंचने का मार्ग खोल दिया।
महाराणा प्रताप ने शहजादा सलीम पर भयंकर आक्रमण किया, महावत मारा गया और हौदे पर जबरदस्त भाले का प्रहार किया, शहजादा सलीम नीचे गिर गया जिसे बचाने मान सिंह आया परिणाम स्वरूप मान सिंह की भी वही दुर्गति हुई। शहजादा सलीम और मान सिंह युद्ध भूमि से पलायन कर गए। सैय्यद बारहा और आसफ खां पर राणा पूंजा (पूंजा भील) ने घात लगाकर हमला किया। मुगल सेना हल्दीघाटी से पलायन कर गई और महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी का युद्ध जीत लिया। परंतु दूसरी ओर रामप्रसाद ने शेष हाथियों का पीछा किया और आगे निकल गया। परंतु थकान अधिक हो गई थी और महावत भी मारा गया तब 7 हाथियों और 14 महावतों की सहायता से पकड़ा गया।
अकबर के इस युद्ध का एक कारण रामप्रसाद हाथी की प्राप्ति भी करना था, परंतु सब व्यर्थ गया अकबर ने इसका नाम पीरप्रसाद रखा और हर प्रकार के मनपसंद खाद्यान्न प्रस्तुत किए परंतु रामप्रसाद ने ग्रहण नहीं किया और इसी अवस्था में 18 दिन बाद रामप्रसाद ने प्राणोत्सर्ग किया। धूर्त अकबर ने स्वयं रामप्रसाद की मृत्यु पर कहा कि जिसके हाथी को मैं नहीं झुका सका.. उसके स्वामी को क्या झुका सकूंगा। अंत में यह सत्य ही है कि धन और संपत्ति आएगी भी-जाएगी भी-फिर आएगी, परंतु आत्मसम्मान जाने के बाद कभी लौट कर नहीं आता है। महाराणा प्रताप के स्व के लिए पूर्णाहुति देने वाले महारथी हाथी रामप्रसाद को शत् शत् नमन है।
साभार
डॉ. आनंद सिंह राणा
विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग, श्रीजानकीरमण महाविद्यालय जबलपुर एवं इतिहास संकलन समिति महाकोशल प्रांत।