- महाराष्ट्र की एक ऐसी ही मां थी जिनका नाम था द्वारिकाबाई। उनकी एक नहीं, दो नहीं बल्कि तीन-तीन संतानें एक-एक कर फांसी के फंदे पर झूल गईं।
जबलपुर/हमारी जन्मभूमि को स्वर्ग जैसा श्रेष्ठ बनाने में जिन माताओं ने अपने नौजवान पुत्रों को हँसते-हँसते न्यौछावर कर दिया उन माताओं की अन्तर आत्मा को समझ पाना तथा उनकी वेदनाओं को अनुभव कर पाना असंभव है। वीर माताओं की ये वीर संतानें फांसी के फंदे को चूमते हुए दुनिया छोड़ गए। एक माँ के लिए यह दृश्य उनके हृदय को छलनी-छलनी करने वाला पल होता है। परन्तु इस वेदना को हृदय में दबा कर वीर माता की भूमिका निभाना कितना कष्टप्रद था, इसे क्रांतिकारियों की मां बनकर ही समझा जा सकता है।
महाराष्ट्र की एक ऐसी ही मां थी जिनका नाम था द्वारिकाबाई। उनकी एक नहीं, दो नहीं बल्कि तीन-तीन संतानें एक-एक कर फांसी के फंदे पर झूल गईं। वह खुली आंखों से यह सारा मंजर देखती रही और सहती रही। एक माँ के लिए अपने बच्चों को कष्ट में देखना कितना दर्दनाक होता है इसका हर कोई सिर्फ अंदाजा ही लगा सकता है। वीर माता द्वारिकाबाई के तीनों पुत्र दामोदर हरि चाफेकर, बालकृष्ण हरि चाफेकर और वासुदेव हरि चाफेकर मातृभूमि के लिए हँसते हुए फांसी पर झूल गए। वे तीनों भाई लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के संपर्क में थे। तीनों भाई तिलक जी को गुरुवत सम्मान देते थे। अंग्रेजों के द्वारा किए गए क्रूर व्यवहार ने उनके हृदय में क्रांति की चिंगारी को सुलगाया था। इसी प्रतिशोध की भावना से अंग्रेज अधिकारी रैण्ड को मारने का संकल्प तीनों भाइयों ने किया। रैण्ड आखिर में इनके हाथों मारा गया। इस आरोप में प्रथम दामोदर को और बाद में बालकृष्ण तथा वासुदेव को फांसी की सजा हुई। इस तरह चाफेकर बंधुओं ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। तीनों बेटों के बलिदान ने मां द्वारिकाबाई के हृदय को पूरी तरह से छलनी-छलनी कर दिया। परंतु द्वारिकाबाई ने अपनी असीम सहनशीलता से इन वीर पुत्रों की एक श्रेष्ठ वीर माता होने का परिचय दिया। आइए जानते हैं वीर माता द्वारिकाबाई की कहानी सिर्फ booksinvoice.com पर।