Jabalpur/जबलपुर/हमारा भारत प्राचीन काल से ही जाति-प्रथा जैसी बुरी व्यस्था के चंगुल में फंसा हुआ है। जातिवाद भेद-भाव आज हमारे समाज के लिए एक कोढ़ जैसी घातक बीमारी बन चुकी है। यह मानवता के नाम पर कलंक है क्योंकि यह मानव को ही मानव से पृथक करती है। भगवान ने सभी मनुष्यों को एक समान बनाया है। कोई ऊंच-नीच या छोटा-बड़ा नहीं होता। लेकिन जातिवाद भेद-भाव के नाम पर मनुष्यों ने समाज के कुछ वर्गों को ऊंचा और कुछ को नीचा बना दिया है। जातिवाद भेद-भाव लोगों को पूर्वाग्रह, रूढ़िवादिता जैसी बुराइयों से जोड़ता है जो समाज को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। ये मतभेद अक्सर समाज के भीतर विवाद का कारण बनती है। जाति व्यवस्था लोगों के एक वर्ग का लगातार दमन करके सांप्रदायिक हिंसा को जन्म देता है।
हमारे भारत देश में विभिन्न जाति, धर्म, गरीबी, रंगभेद, लिंगभेद आदि के कारण बहुत सी कुप्रथाओं और बुराइयों ने जन्म लिया है। इन सामाजिक कुरीतियों को मिटाने में भारतीय सामाज सुधारकों ने अपना सफलतापूर्वक योगदान दिया है। समाज में जो व्यक्ति समाज के भलाई और अच्छाई के लिए बदलाव लाना चाहता हो वह किसी कमजोर वर्ग के लोगों की पीड़ा को सहन नहीं कर सकता। ऐसे लोग समाज हित के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं। ये एक ऐसे दुनिया की रचना करते हैं जो सर्वमान्य और बुराइयों से रहित हो। जो जीवन को बेहतर बनाती हो। वास्तव में समाज सुधारक एक आम इंसान होता है जो असाधारण तरीके से आम लोगों के बीच रहकर ही मानवता की सेवा करता है। भारत सौभाग्यशाली है कि उसके इतिहास में कई असाधारण व्यक्तियों ने जन्म लिया जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज को बेहतर बनाने और दबे-कुचले वर्ग के लोगों को ऊपर उठाने में लगा दिया। उन्हीं अमूल्य रत्नों में से एक हैं डॉ. भीमराव अंबेडकर। दलितों के मसीहा डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्म मध्य प्रदेश के महू जिले में 14 अप्रैल 1891 को हुआ था।
डॉ. भीमराव अंबेडकर जाति से दलित थे। उस समय उनकी जाति को अछूत जाति माना जाता था। इसलिए उनका बचपन बहुत ही मुश्किलों में व्यतीत हुआ था। वे समाज में जहां भी जाते थे उन्हें हे दृष्टि से देखा जाता था। उनसे छुआ-छूत का व्यवहार किया जाता था। परंतु अंबेडकर जी अपना कार्य स्वयं करते थे। वे एक विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता, अर्थशास्त्री, कानूनविद, राजनेता और समाज सुधारक थे। उन्होंने दलितों और निचली जातियों के अधिकारों के लिए छुआ-छूत और जाति भेद-भाव जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संर्घष किया। उन्होंने भारत के संविधान को तैयार करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री और भारतीय संविधान के निर्माताओं में से एक थे। बचपन के इतने संघर्षों के बाद भी आज भीमराव अंबेडकर ने समाज में हर तरह से अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
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