- वे सिखों के 9वें गुरु थे।
- इतिहासकारों की माने तो गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन में 14 युद्ध किए।
- गोबिंद सिंह जी ने अपनी छोटी उम्र में ही सिक्खों के दसवें गुरु का पद संभाला और सभी की सहायता करने का उपदेश दिया।
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना, बिहार में हुआ। उनके पिता का नाम गुरु तेग बहादुर था। वे सिखों के 9वें गुरु थे। उनकी माता का नाम गुजरी देवी था। गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म नाम गोबिंद राय था परंतु वे गुरु गोबिंद सिंह के नाम से ही प्रसिद्ध हुए। पटना में जन्मे गोबिंद जी का शुरुआती 4 वर्ष ही पटना में बीता। इसके बाद वे परिवार के साथ 1670 में पंजाब आ गए और फिर वो जब 6 साल के हुए तब हिमालय की शिवालिक घाटी में स्थित चक्क ननकी में रहने लगे।
आपको बता दें कि चक्क ननकी की स्थापना उनके पिता एवं 9वें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर सिंह ने की थी, जो कि आज आनंदपुर साहिब के नाम से जाना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसी स्थान पर अपनी प्राथमिक शिक्षा लेने के साथ एक महान योद्धा बनने के लिए अस्त्र-शस्त्र चलाने की विद्या, लड़ने की कला, तीरंदाजी करना एवं मार्शल आर्ट्स की अनूठी कला सीखी। इसके अलावा पंजाबी, ब्रज, मुगल, फारसी, संस्कृत भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया और “वर श्री भगौती जी की” महाकाव्य की रचना की। गुरु तेग बहादुर यानि गोबिंद सिंह के पिताजी सिखों के नौ वे धर्म गुरु थे। जब कश्मीरी पण्डितों को ज़बरदस्ती इस्लाम धर्म स्वीकार करने पर मजबूर किया जा रहा था तब गुरु तेगबहादुर जी ने इसका पुरजोर विरोध किया और हिन्दुओं की रक्षा की। उन्होंने खुद भी इस्लाम धर्म कबूल करने से इनकार कर दिया। इस कारण से उन्हे हिन्दुस्तान के बादशाह औरंगज़ेब नें चांदनी चौक विस्तार में उनका सिर कलम करवा दिया। इस घटना के बाद उनके पुत्र गुरु गोबिंद सिंह सिखों के दसवे गुरु नियुक्त किए गए।
उनके वैवाहिक जीवन के बारे में अलग-अलग विचार है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उनकी एक पत्नी, माता जीतो थी, जिन्होंने बाद में अपना नाम बदलकर माता सुंदरी रख लिया जबकि अन्य सूत्रों का कहना है कि उनकी शादी तीन बार हुई थी। उनकी तीन पत्नियां माता जीतो, माता सुंदरी और साहिब देवी थीं। उनके चार बेटे थे: अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह।
गुरु गोबिंद सिंह के द्धारा किए गए प्रमुख कार्यों की सूची इस प्रकार है-
गुरु गोबिंद सिंह द्वारा लड़े हुए कुछ प्रमुख युद्ध –
गुरु गोविन्द सिंह जी द्वारा लड़े गए युद्दों के नाम
गुरु गोबिंद सिंह ने मुगल साम्राज्य और शिवालिक पहाड़ियों के राजाओं के खिलाफ 13 लड़ाई लड़ी ।
गुरु गोबिन्द सिंह जी की रचनायें
गुरु गोबिंद सिंह जी का अंतिम समय
गुरु गोविंद सिंह जी की माता गुजरी तथा उनके दो जवान पुत्र वजीर खान के द्वारा बंधक बनाए गए थे। तथा उनके दो जवान बेटे साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फ़तेह सिंह, जिनकी उम्र 5 साल और 8 साल की थी उन्हें दीवार में जिंदा चिनवा दिया गया था। क्योंकि उन्होंने इस्लाम मानने से और अपनाने से मना कर दिया था। यह देखकर के और इस बारे में सुनकर के माता गुजरी ने अपना देह त्याग कर दिया और गुरु गोविंद सिंह जी के बड़े पुत्र साहिबजादा अजीत सिंह और साहिबजादा जूझार सिंह, जिनकी उम्र 13 वर्ष और 17 वर्ष थी वह चमकौर के युद्ध में मुगल आर्मी के हाथों वीरगति को प्राप्त हो गए।
इसके बाद में वजीर खान ने दो अफ़गानों को गुरु गोविंद सिंह जी की हत्या करने के लिए चुना तथा उन हत्यारों को गुरु गोविंद सिंह जी की सेना पर नजर रखने को कहा और गुरु गोविंद सिंह जी की दिनचर्या पर भी नजर रखने को कहा, और मौका मिलते ही मार देने को कहा।
औरंगजेब की मृत्यु के बाद बहादुर शाह हिंदुस्तान के नए बादशाह बन गए। बहादुर शाह को यह गद्दी दिलाने में गुरु गोविंद सिंह जी ने पूर्ण रूप से सहायता प्रदान की इसी कारण से वे मित्रतापूर्ण व्यवहार करने लगे। गुरु गोविन्द सिंह जी तथा हिंदुस्तान के नए बादशाह के मैत्रीपूर्ण भाव से घबराकर सरहिंद के नवाब वजीर खान ने 1708 में अपने दो पठानों वासिल बेग व जमशेद खान को गोविंद सिंह जी की हत्या करने भेज दिया।
उन्होने गोविन्द सिंह जी के दिल के नीचे एक घाव कर दिया जिसका कुछ समय इलाज भी चला परंतु नांदेड़ में 7 अक्टुबर 1708 को उनका निधन हो गया। गुरू गोविंद सिंह जी के एक हत्यारे को तो उन्होंने हि कटार से मार डाला और दूसरे हत्यारे को सिक्ख समाज ने मार डाला।
दोस्तों आज हमने सिक्खों के दसवें तथा अंतिम जीवित गुरु, गुरू गोविंद सिंह जी के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की है। उन्होने अपनी छोटी उम्र में ही सिक्खों के दसवें गुरु का पद संभाला और सभी की सहायता करने का उपदेश दिया। उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की तथा 5 कक्के का नियम भी दिया। तो दोस्तों यही थी गुरु गोबिंद सिंह जी की कहानी।
साभार
डॉ. आनंद सिंह राणा
विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग, श्रीजानकीरमण महाविद्यालय जबलपुर एवं
उपाध्यक्ष- इतिहास संकलन समिति महाकोशल प्रांत।