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Thursday, Nov 21, 2024,

Literature / Story / India / Madhya Pradesh / Jabalpur
एक बन्दीगृह में आलिंगनबद्ध हो जाने वाले दो प्रवासी भारतीयों की कहानी- आकाशदीप

By  AgcnneduNews...
Wed/Jun 14, 2023, 12:05 PM - IST   0    0
  • हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभ, कवि, नाटककार, उपन्यासकार एवं कहानीकार जयशंकर प्रसाद मानव-मन की भावनाओं को चित्रित करने में कुशल शिल्प रहे हैं।
  • चम्पा के पिता जलदस्यु बुद्धगुप्त के साथियों से संघर्ष करते हुए मारे गए थे।
  • बुद्धगुप्त ने अपने परिश्रम, पुरुषार्थ के बल से चम्पाद्वीप में सारी व्यवस्था की जिसके बाद चम्पा उन द्वीपों की रानी बन गई।
Jabalpur/

जबलपुर/प्रेम एक ऐसा अद्भुत एहसास है जो त्याग और बलिदान की प्रेरणा देता है। यही वह निराला पंथ है जिस पर चलकर ‘जियो और जीने दो’ की भावना मनुष्य के अंदर उत्पन्न होता है। प्रेम हमें उदारता, शान्ति और भाईचारे की प्रेरणा देता है। यह हमें सहनशील बनाता है तथा कष्टों और मुसीबतों से भी लड़ने की शक्ति देता है। हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभ, कवि, नाटककार, उपन्यासकार एवं कहानीकार जयशंकर प्रसाद मानव-मन की भावनाओं को चित्रित करने में कुशल शिल्प रहे हैं। उनके द्वारा लिखित कहानी आकाशदीप भी इस भावना से पृथक् नहीं है।

जयशंकर प्रसाद जी ने बड़े ही नाटकीय ढंग से भाव तथा अनुभूतियों को साकार बनाने का सफल प्रयास किया है। बुद्धगुप्त को जलदस्यु और चम्पा को बंदिनी कहकर प्रसाद जी ने पाठकों को उस मूल संवेदना के साथ जोड़ा है जिससे पता चलता है कि मानव के आचरण और व्यावहार को प्रेम तथा त्याग के रास्ते पर चलकर बदला जा सकता है। वैसे भी प्रसाद जी इतिहास और कल्पना का सुन्दर समन्वय करने में सिद्धहस्त रहे हैं। ’आकाशदीप’ एक बन्दीगृह में आलिंगनबद्ध हो जाने वाले दो प्रवासी भारतीयों की कहानी है। ये दो प्रवासी भारतीय बुद्धगुप्त और चम्पा है।

चम्पा के पिता जलदस्यु बुद्धगुप्त के साथियों से संघर्ष करते हुए मारे गए थे। चम्पा के पिता वणिक मणिभद्र के यहाँ प्रहरी का काम करते थे। पिता की मृत्यु के पश्चात् मणिभद्र ने चम्पा को अपना बनाना चाहा और उसके मना करने पर उसे बन्दी बना लिया। बुद्धगुप्त भी वहाँ बन्दी था परंतु चम्पा की सहायता से उसे मुक्ति मिल गयी। दोनों ने मिलकर नाव के नाविकों और प्रहरियों को नष्ट कर नाव पर अधिकार कर लिया और नाविक को अपने अनुसार चलने को बाध्य किया। नाव चलकर एक नये द्वीप पर जा पहुँची जिसका नाम चम्पाद्वीप रखा गया। बुद्धगुप्त ने अपने परिश्रम, पुरुषार्थ के बल से चम्पाद्वीप में सारी व्यवस्था की जिसके बाद चम्पा उन द्वीपों की रानी बन गई। बुद्धगुप्त चम्पा को अपनी हृदयेश्वरी मानता था परंतु चम्पा उसे पृथक ही रहना चाहती थी। वह उसे अपने पिता का हत्यारा समझती थी। चम्पा के हृदय में प्रेम और घृणा दोनों भाव उमड़-घुमड़ रहे थे। इस कहानी में प्रेम, आदर्श, व्रत, त्याग और मानव-हृदय के स्वाभाविक गुणों का सुन्दर सामंजस्य जयशंकर प्रसाद जी ने प्रस्तुत किया है। परंतु क्या सच में बुद्धगुप्त ही चम्पा के पिता का हत्यारा था या इसके पीछे किसी और का हाथ था? आखिर कौन था इस कहानी के पीछे छिपा असली नायक? क्या चम्पा कभी बुद्धगुप्त के प्रेम को समझ पाएगी?

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