Jabalpur/जबलपुर/संदेह मानव का सामान्य स्वभाव है इसीलिए हम सब इसके आदि होते हैं। परंतु संदेह किस पर करें और क्यों करें? ऐसा करने से पहले गंभीरतापूर्वक विचार करना और परिस्थितियों का सही आकलन करना जरूरी होता है। बिना सोचे समझे संदेह और गलतफ़हमी को अपने मन में पनाह देने से रिश्तों के धागों में अनेकों गांठ पड़ जाते हैं। हो सकता है कि भविष्य में यह जानलेवा भी साबित हो जाए। जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कहानी संदेह में उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार मनुष्य के मन में विभिन्न प्रकार का संदेह जन्म लेता है। ये भ्रम अथवा संदेह अक्सर जीवन की वास्तविकता से परे होता है। मन में पल रहे शक और संदेह के कारण मनुष्य का व्यवहार असंतुलित होने लगता है। वह गलतफ़हमी का शिकार होकर अजीबों-गरीब हरकतें करने लगता है। अत: हमें किसी भी प्रकार के संदेह को अपने मन में जगह नहीं देना चाहिए बल्कि इसका निराकरण तुरंत करना चाहिए। संदेह से उत्पन्न परिणाम घातक होता है जो जीवन के लिए संकट पैदा कर सकता है।
संदेह कहानी जयशंकर जी द्वारा लिखी गयी सर्वश्रेष्ठ कहानियों में से एक है। इसमें उन्होंने मनुष्य जीवन के विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों को दर्शाया है। ये परिस्थितियाँ मनुष्य के मन में भ्रम एवं संदेह उत्पन्न करके उसके अंदर हलचल पैदा कर देता है। इसमें पात्रों की मानसिक स्थिति को सुंदर एवं प्रभावपूर्ण ढंग से व्यक्त किया गया है। रामनिहाल एक पढ़ा-लिखा युवक था जो नौकरी की तलाश में श्यामा के घर आकर किराए पर रहने लगा था और उसी शहर में काम करते हुए अपना भविष्य बनाना चाहता था। श्यामा मकान मालकिन थी जो एक विधवा का जीवन व्यतीत कर रही थी। रामनिहाल श्यामा से एकतरफा प्रेम करने के साथ-साथ उसे अपना शुभचिंतक, मित्र तथा रक्षक मानता था। इसी बीच रामनिहाल के साथ काम कर रहे परिचित ब्रजमोहन के घर मेहमान के रूप में मोहन और मनोरमा का आगमन होता है। समयाभाव के कारण ब्रजकिशोर रामनिहाल से अपने मेहमानों को बनारस के घाटों का भ्रमण करवाने की ज़िम्मेदारी देता है। रामनिहाल, मोहन और मनोरमा को घाटों के भ्रमण के लिए ले जाता है। भ्रमण करते वक़्त रामनिहाल मनोरमा के करीब आने लगता है। उसी दौरान मनोरमा रामनिहाल को अपने पारिवारिक मतभेदों की जानकारी देती है और उससे मदद करने की अपील करती है। भ्रमण के दौरान मोहन अपनी पत्नी पर संदेह व्यक्त करते हुए उसे चरित्रहीन बताने का प्रयास करता है। जिसे सुन कर रामनिहाल के मन में मरोरमा के लिए सहनभूति पैदा हो जाती है।
कहानी के पात्र रामनिहाल और मोहन बाबू दोनों ही संदेह से ग्रसित थे। रामनिहाल को संदेह है कि मनोरमा उससे प्रेम करती है। दूसरी ओर मोहन बाबू यह मान बैठे थे कि ब्रजकिशोर उनकी संपत्ति पर अधिकार करना चाहता है जिसमें मनोरमा का चोरी-छिपे सहयोग है। यह संदेह ही है जिसके कारण उनके विचारों में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस कहानी के अंत में संदेह का निराकरण श्यामा द्वारा किया गया है। आखिर कैसे श्यामा ने इन परिस्थितियों को सुलझाया होगा?
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