सुशीलो मातृपुण्येन पितृपुण्येन चातुरः।
औदार्यं वंशपुण्येन आत्मपुण्येन भाग्यवान।।
तात्पर्य : कोई भी मनुष्य अपनी माता के पुण्य से सुशील होता है,
पिता के पुण्य से चतुर होता है,
वंश के पुण्य से उदार होता है और
अपने स्वयं के पुण्य होते हैं तभी वह भाग्यवान होता है।
(अतः सौभाग्य प्राप्ति के लिए सत्कर्म करते रहना आवश्यक है।)
Any human being is virtuous with the virtue of his mother, being wiser by the father's virtue, generous by the virtue of the lineage and having his own virtue, he is only fortunate. (Therefore, it is necessary to continue doing good deeds for achieving good fortune.)