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Friday, Oct 18, 2024,

Literature / Story / India / Madhya Pradesh / Jabalpur
रिश्तों के कथित प्रेम की आड़ में पनपने वाले ईष्या द्वेष की कहानी- दो भाई

By  AgcnneduNews...
Fri/Jun 16, 2023, 11:47 AM - IST   0    0
  • यह एक ऐसा रिश्ता होता है जिसमें कितनी मनमर्जी, कितनी लड़ाई-झगड़े क्यों न हो लेकिन दोनों कुछ ही देर में फिर से मिल जाते हैं जैसे कुछ हुआ ही न हो।
  • सोच में बदलाव का होना तो ठीक है परंतु रिश्तों में बदलाव का होना पूरे परिवार को दुखी कर देता है।
  • बचपन में एक को रोते देख दूसरा भाई भी रोने लगता था लेकिन बड़े होने पर वही भाई एक दूसरे की मृत्यु हो जाने पर भी नहीं रोते क्योंकि शायद उन्हें अपने और पराएपन की पहचान हो गई है।
Jabalpur/

जबलपुर/जन्म के साथ ही बच्चा अनेक रिश्तों के बंधन में बंध जाता है। रिश्तों के ताने-बाने से ही परिवार का निर्माण होता है। रिश्तों की सरिता में सभी भावनाओं और आपसी प्रेम की धारा में बहते हैं। उन्हीं रिश्तों में से एक होता है भाई-भाई का रिश्ता। भाई-भाई का रिश्ता बड़ा ही प्यारा और अनोखा होता है। यह एक ऐसा रिश्ता होता है जिसमें कितनी मनमर्जी, कितनी लड़ाई-झगड़े क्यों न हो लेकिन दोनों कुछ ही देर में फिर से मिल जाते हैं जैसे कुछ हुआ ही न हो। वे बचपन से ही एक-दूसरे के दोस्त जैसे होते हैं। उनका साथ में खेलना, स्कूल जाना, साथ खाना और साथ सोना ये सब उनके दिनचर्या का हिस्सा होता है। भाई-भाई का रिश्ता बहुत ही अनमोल होता है जिसमें वे एक-दूसरे की खुशी में खुश होते हैं। परंतु किसी भी रिश्ते में धूप-छाँव का होना सहज बात है। जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं हमारे साथ हमारी जिम्मेदारियाँ और सोच भी बढ़ती जाती है। सोच में बदलाव का होना तो ठीक है परंतु रिश्तों में बदलाव का होना पूरे परिवार को दुखी कर देता है।

ऐसी ही कहानी है दो भाई की। कलावती के दो बेटे थे जिनमें बड़ा बेटा केदार और छोटा बेटा माधव था। जब केदार और माधव छोटे थे तब माँ कलावती उन दोनों को अपने जांघों पर बैठा कर दूध-रोटी खिलाती और प्यार से पुचकारती थी। वे दोनों माँ के आँखों के तारे थे। दोनों भाइयों में बड़ा स्नेह था। दोनों बेटों को निहारकर कलावती गर्व और प्रेम से भर जाती थी। दोनों साथ-साथ पाठशाला जाते, साथ-साथ खाते और साथ में ही रहते थे। बड़े होते ही दोनों भाइयों का ब्याह हुआ। केदार की वधू चम्पा अमित-भाषिणी और चंचला थी। माधव की वधू श्यामा साँवली-सलोनी, रूपराशि की खान थी। बड़ी ही मृदुभाषिणी, बड़ी ही सुशील और शांत स्वभाव की थी। केदार चम्पा पर मोहे और माधव श्यामा पर रीझे। परंतु कलावती का मन किसी से न मिला। केदार को संतान की अभिलाषा थी और माधव को धन-संपत्ति की। माधव को चार पुत्र तथा चार पुत्रियाँ थी।

‘दो भाई’ करीबी रिश्तों के कथित प्रेम की आड़ में पनपने वाले ईष्या द्वेष को उजागर करती चुनिंदा कहानियों में से एक है। बचपन में एक को रोते देख दूसरा भाई भी रोने लगता था लेकिन बड़े होने पर वही भाई एक दूसरे की मृत्यु हो जाने पर भी नहीं रोते क्योंकि शायद उन्हें अपने और पराएपन की पहचान हो गई है। विवाह के बाद केदार अपने सगे भाई को कर्ज दिलाने के नाम पर प्रपंच रचकर उसके हिस्से का घर भी हड़प लेना चाहता है। दो भाइयों में ऐसा बैर देखकर माता का हृदय कलप उठता है। क्या कलावती उन दोनों भाइयों को फिर से एक कर पाएगी? एक भाई के हृदय में प्रबल होता द्वेष क्या दूसरे भाई का घर बर्बाद कर देगा? क्या पत्नी की सीख दो भाइयों के प्रेम पर हावी हो जाएगा?

इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए सुनिए मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी ‘दो भाई’, सिर्फ booksinvoice.com पर।

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