यस्तु संचरते देशान् यस्तु सेवेत पण्डितान्।
तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि।।
भावार्थ – जो व्यक्ति भिन्न-भिन्न देशों में यात्रा करता है और विद्वानों से सम्बन्ध रखता है। उस व्यक्ति की बुध्दि उसी तरह होती है जैसे तेल की एक बूंद पूरे पानी में फैलती है।