पुरूषा बहवो राजन सततं प्रिय वादिन:
अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ:|
भावार्थ- इस संसार मे दूसरो को निरन्तर प्रसन्न करने के लिये प्रिय बोलने वाले प्रसंसक लोग बहुत है परन्तु सुनने मे अप्रिय विदित हो और वह कल्याण करने वाला हो ऐसा कहने और सुनने वाला पुरुष दुर्लभ है