अनोभां तन्वानो विलसति सना भारतहृदि
हुतासूनां रक्ताञ्चलवलितवासः प्रभवति।
प्रकम्प्यैनं धन्यं मनुत इह चाभ्रङ्कषतति
स्त्रिरङ्गी प्राणा मे जयति नितरां विश्वविजयी।।
भावार्थ- जो भारत माता की शोभा बढाता हुआ सभी भारतवासी के हृदय में विलास कर रहा हैं, जिसने अपने प्राणो की आहुति दि हैं उन के रक्तसे युक्त जो वस्त्र दैदीप्यमान हो रहा हैं, इस को लहराकर वायु के समूह अपने आप को धन्य मान रहे हैं, वैसा वह तीन रङ्गोवाला मेरा विश्वविजयी राष्ट्रध्वज सदा विजयी रहें।