देवर्षि नारद की भक्ति से भेंट श्रीमदभागवत जी के महात्म के प्रथम अध्याय के पहले श्लोक में सत-चित-आनन्द स्वरूप परमात्मा की स्तुति की गई है नमन किया गया है जिसके द्वारा इस जगत की उत्पत्ति, पालन तथा विनाश आदि हो रहा है, तथा जो इस जगत के प्राणिंयों को उसके जीवन में व्यापत त्रितापों (दैहिक, दैविक तथा भौतिक तापों) अर्थात कष्टों से मुक्ति प्रदान करने वाला है I श्लोक में बताया गया कि परमात्मा सत-चित-आनन्द स्वरूप है सत अर्थात परमात्मा नित्य है शाश्वत है, चित अर्थात शुद्ध चैतन्य स्वरूप तथा आनन्द से परिपूर्ण है तथा वही पर्मात्मा जो इस सम्पूर्ण विश्व का इस बृम्हांड का उत्पत्तिकर्ता है जो इस सम्पूर्ण विश्व का पालन कर रहा है तथा नवश्रजन के लिये इस विश्व का विनाश कर्ता है उस पर्मात्मा श्री कृष्ण को हम सभी जीव नमन करते हैं, यहां श्रीकृष्ण कहा है श्री अर्थात परमात्मा की शक्ति श्री राधा रानी सहित परमात्मा प्रेमाधार कृष्ण को नमन किया गया है I