- ब्रम्हा ने जल छिड़का और उन जलकणों से माँ सरस्वती का अवतरण हुआ।
"बुद्धि, विद्या, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी-माता सरस्वती" "प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनानामणित्रयवतु" "ऋग्वेद" अर्थात् ये परम चेतना है। सरस्वती के रुप में ये हमारी प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हम में जो मेधा है, उसका आधार भगवती सरस्वती हैं।
बसंत पंचमी में माँ सरस्वती के अवतरण इस तरह हुआ। भगवान् विष्णु के निर्देशानुसार ब्रम्हा ने सृष्टि की रचना कर दी पर सब कुछ मौन था। सर्जना अधूरी रह गई थी, ऐसे में दोनों ने एक सुविचार किया, तब ब्रम्हा ने जल छिड़का और उन जलकणों से माँ सरस्वती का अवतरण हुआ। माँ सरस्वती ने वीणा की प्रथम झंकार की और तभी सभी मूक प्राणियों में वाणी का उदय हुआ और प्रकृति गुंजायमान हुई तथा विभिन्न स्वरूपों में पल्लवित और पुष्पित होकर सर्वत्र मुस्कुरा उठी। वह दिन था बसंत पंचमी।