मुंबई/उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 12 जुलाई को कहा कि विकसित भारत @2047 की अवधारणा केवल एक लक्ष्य नहीं बल्कि एक पवित्र मिशन है। इस बात पर जोर देते हुए कि यह सदी भारत की है, उन्होंने "हमारे समाज के प्रत्येक नागरिक, प्रत्येक संस्थान और प्रत्येक सेक्टर" से अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देने की अपील की।
मुम्बई में NMIMS के छात्रों और संकाय को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने इस बात पर बल दिया कि सकारात्मक शासन पहलों की श्रृंखला के परिणामस्वरूप, व्यापार ईकोसिस्टम में व्यापक परिवर्तन आया है और भारत को अब निवेश और अवसरों के पसंदीदा गंतव्य के रूप में देखा जा रहा है।
श्री धनखड़ ने भारत की राजनीतिक यात्रा की तुलना रॉकेट की उड़ान से की, जिसमें उन्होंने कभी-कभार आने वाली चुनौतियों के बावजूद गतिशीलता और प्रगति पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार वायु के बुलबुले किसी उड़ान के रास्ते (ट्रैजेक्टरी) या गंतव्य को बाधित नहीं करते, उसी प्रकार भारत की राजनीतिक चुनौतियां इसके उत्थान में बाधा नहीं बन पाई हैं। राष्ट्र की महत्वपूर्ण प्रगति को रेखांकित करते हुए, श्री धनखड़ ने इस यात्रा को आरंभ करने के लिए एक दशक पहले किए गए अपार प्रयासों पर जोर दिया और कहा, "मेरा विश्वास करें, अगले पांच वर्षों में भारत का उत्थान गुरुत्वाकर्षण बल से आगे बढ़कर किसी रॉकेट की तरह होगा।"
राष्ट्र की प्रगति को बदनाम करने और उसे कलंकित करने का प्रयास करने वाली घातक मंशा वाली नापाक शक्तियों की उपस्थिति को रेखांकित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने युवाओं से भारत की विकास गाथा को बदनाम करने वाले और हमारे संस्थानों की छवि खराब करने वाली विकृत कहानियों का सक्रिय रूप से प्रत्युत्तर देने की अपील की।
अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का उल्लेख करते हुए, उपराष्ट्रपति ने 1963 में एक संसदीय चर्चा का उल्लेख किया जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इसकी अस्थायी प्रकृति पर जोर देते हुए कहा था कि अनुच्छेद 370 समय के साथ खत्म हो जाएगा। वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने में उनके निर्णायक कदम के लिए सांसदों को धन्यवाद देते हुए, श्री धनखड़ ने उल्लेख किया कि यदि डॉ. अंबेडकर ने अनुच्छेद 370 का मसौदा तैयार किया होता या सरदार पटेल स्वतंत्रता के बाद जम्मू और कश्मीर के एकीकरण के प्रभारी होते तो परिणाम अलग हो सकते थे।
अपने संबोधन में उपराष्ट्रपति ने नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला और वल्लभी जैसे भारत के प्रसिद्ध शैक्षणिक संस्थानों के उज्ज्वल इतिहास को रेखांकित किया। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि इन प्राचीन विश्वविद्यालयों ने भारत को ज्ञान की महाशक्ति बनाया, इसकी राजनयिक सॉफ्ट पावर को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाया और व्यापार की दिशा को आकार दिया। उन्होंने इन ऐतिहासिक शिक्षण केंद्रों की विरासत से प्रेरणा लेते हुए राष्ट्रीय विकास और सशक्तिकरण में उच्च शिक्षा की महत्वपूर्ण प्रासंगिकता को भी रेखांकित किया।
शिक्षा की रूपान्तरकारी शक्ति को रेखांकित करते हुए, श्री धनखड़ ने इसे एक प्रेरक शक्ति बताया जो व्यक्तियों को सशक्त बनाती है, नवोन्मेषण को बढ़ावा देती है, आर्थिक विकास को गति देती है तथा सामाजिक और राष्ट्रीय प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
इस अवसर पर, उपराष्ट्रपति ने युवाओं से पारंपरिक सोच से बाहर निकलकर आज उपलब्ध बेशुमार अवसरों को अपनाने का आग्रह किया। प्रतियोगी परीक्षाओं पर पारंपरिक फोकस से आगे बढ़ने और विभिन्न क्षेत्रों में उभर रही नई, गैर-परंपरागत संभावनाओं का पता लगाने की आवश्यकता जताते हुए, श्री धनखड़ ने सभी को क्षितिज से परे देखने और एआई, क्वांटम कंप्यूटिंग, ग्रीन हाइड्रोजन मिशन जैसे उभरते क्षेत्रों में अपार संभावनाओं को पहचानने के लिए प्रोत्साहित किया।
इस अवसर पर डॉ. (श्रीमती) सुदेश धनखड़, महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री रमेश बैस, राज्यसभा सांसद श्री प्रफुल्ल पटेल, एनएमआईएमएस के कुलाधिपति श्री अमरीशभाई रसिकलाल पटेल, एनएमआईएमएस के कुलपति डॉ. रमेश भट्ट, एनएमआईएमएस के प्रतिकुलपति डॉ. शरद म्हैसकर, संकाय सदस्य, कर्मचारी और छात्र उपस्थित थे।