- महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा भाषा शास्त्र पर आयोजित कार्यशाला बनी यादगार।
- उचित और निर्दोष भाषा द्वारा ही भावनाओं और वैचारिक संवाद की सार्थक अभिव्यक्ति सम्भव।
मुंबई/महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई द्वारा 15 जनवरी को अकोला के रा.ल.तो. विज्ञान महाविद्यालय में हिंदी प्रेमियों, हिंदी के अभ्यासकों और साहित्य के शिक्षकों के लिए रविवार, 14 जनवरी, 2024 को आयोजित भाषा शास्त्र की कार्यशाला अपनी उत्कृष्ट गुणवत्ता एवं सुरुचिपूर्ण व्याख्यानों की बदौलत सभी प्रतिभागियों के लिए यादगार बन गई।
इस अवसर पर कार्यशाला एवं संगोष्ठी के उद्घाटक तथा स्थानीय समाचार पत्र मातृभूमि के प्रकाशक गोपीकिशन बाजोरिया ने कहा कि इस सभागृह में सभी हिंदी प्रेमियों को सम्बोधित करते हुए मैं अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूॅं। अपने मनोगत के बीच उन्होंने जमकर तालियां बटोरी। इस आयोजन के स्वागताध्यक्ष स्थानीय शिक्षण संस्था के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राजकुमार हेडा ने कहा कि शिक्षकीय पेशे में उचित भाषा और साहित्य ज्ञान का तो स्थान है ही, बल्कि उनके आचरण का भी विशेष स्थान है क्योंकि जाने-अंजाने छात्रों पर उनके गुरुजनों के आचरण और चरित्र की छाप पडती ही है। उन्होंने कहा कि बेरार जनरल एज्युकेशन सोसायटी, हिंदी साहित्य अकादमी की साहित्यिक गतिविधियों में सदैव ही साथ निभाती आई है और यह सिलसिला निरंतर जारी रहेगा। आयोजन की प्रस्तावना में अकादमी के कार्यकारी सदस्य श्याम प. शर्मा ने कहा कि सैकडों सालों का इतिहास बताता है कि बडे बडे शक्तिशाली राष्ट्रों के बीच हवाई हमलों, भीषण युध्दों, बमबारी, हजारों हत्याओं, अरबों की तबाही के बाद भी हल नहीं होते, बल्कि परस्पर संभाषण, संवादों और चर्चा की सफलता के चलते ही उनमें समझौता हो पाता है। उन्होंने कहा कि भाषा, शैली और अभिव्यक्ति की निर्दोषता से जो संवाद कुशलता पनपती है, वह अत्याधिक महत्व रखती है। अपने-अपने विषयों में निपुण डॉ. वर्षा पुनवटकर, नागपुर एवं कई पुस्तकों के रचनाकार भगवान वैद्य, अमरावती मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे। कार्यशाला में प्रमुखतः छंद, समास और संधि के संदर्भ में अत्याधुनिक पावर पाॅइंट प्रेज़ेंटेशन की मदद से प्रतिभागियों को महत्वपूर्ण जानकारी दी गई तथा उनकी शंकाओं का निरसन किया गया। कार्यशाला के लिए नागपुर की सुविख्यात शिक्षाविद् प्राचार्य डॉ. वर्षा पुनवटकर, भाषा शास्त्र के अध्यापन का गहन अनुभव रखने वाले डॉ. रामप्रकाश तथा अकादमी के सदस्य डॉ. प्रमोद शुक्ल ने आशय व्यक्त किया कि भाषा, लेखन के प्रभावी होने के लिए उसका शुध्द, निर्दोष होना अत्यावश्यक है। उसमें सौंदर्य तब निखरता है, जब वह व्याकरण सम्मत हो। संगोष्ठी का कुशल संचालन कृष्णकुमार शर्मा, डॉ. शैलेंद्र दुबे तथा डॉ. निशाली पंचगाम ने किया। विगत वर्ष से जारी अकादमी के इन कार्यक्रमों के माध्यम से न सिर्फ बडी संख्या में शिक्षक, प्राध्यापक और शिक्षाविद् जुडे हैं, बल्कि अन्य भाषाओं के साहित्य प्रेमी भी बड़ी संख्या में साथ आये हैं। अकादमी की ओर से आयोजित इस साहित्यिक कार्यक्रम में उपस्थित युवाओं से कुछ ऐसी विभूतियों के कार्यों का परिचय कराया गया, जो उत्कृष्ट एवं कृतिशील विचारक हैं और अपने जीवन में लेखन की गहरी सूझबूझ रखकर समाज के प्रति सदैव प्रतिबध्दता निभाते रहते हैं। इनमें गोपाल खंडेलवाल, विजय कौशल, डॉ. सोभागमल भंडारी, महेश शुक्ल, मोहिनी मोडक, हरीश शर्मा मुख्य रूप से शामिल हैं।
इस शुभ अवसर पर डॉ. कोमल श्रीवास द्वारा रचित और अकादमी द्वारा अनुदानित काव्य संग्रह का तथा डॉ. आनंद चतुर्वेदी द्वारा लिखित कहानियों के सह-प्रकाशन पुस्तक का भी विमोचन किया गया।
इस कार्यशाला में अकोला के साथ ही बुलडाणा, अमरावती और वाशिम जिले के हिंदी साहित्य प्रेमी भी अच्छी संख्या में उपस्थित रहे। राज्य गीत से प्रारम्भ होकर राष्ट्रगीत तक कुल तीन सत्रों में यह साहित्यिक संगोष्ठी एवं भाषा विज्ञान कार्यशाला सम्पन्न हई।