×
userImage
Hello
 Home
 Dashboard
 Upload News
 My News
 All Category

 Latest News and Popular Story
 News Terms & Condition
 News Copyright Policy
 Privacy Policy
 Cookies Policy
 Login
 Signup

 Home All Category
Thursday, Nov 21, 2024,

Publication / National Publication / India / /
विस्मृत महायोद्धा सूबेदार बलदेव तिवारीजी की आज जयंती

By  FifthNews Team
Sat/Aug 06, 2022, 02:35 AM - IST   0    0
महायोद्धा सूबेदार बलदेव तिवारी
/

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ऐसे अनेक योद्धा हुए जिन्हें आज भी देश याद करता है। कुछ ऐसे भी हैं जो विस्मृत होने से याद नहीं किए जा सके। आज हम आपको जबलपुर के एक ऐसे महायोद्धा के बारे में बताएंगे जिसे विस्मृत कर दिया गया। नाम है सूबेदार बलदेव तिवारी। जिनके नाम से अंग्रेज अफसर कांपते थे। सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सेना के साथ उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ दिया। सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जबलपुर की 52वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के सूबेदार बलदेव तिवारी ने अद्भुत एवं अद्वितीय पराक्रम दिखाया था। सूबेदार बलदेव तिवारी ने न केवल राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान का प्रतिशोध लिया बल्कि बरतानिया सरकार को हिलाकर रख दिया था। आज जयंती पर उनके पराक्रम को याद करना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 

सूबेदार बलदेव तिवारी का जन्म 6 अगस्त 1819 को हुआ था। सन 1840 में सूबेदार बलदेव तिवारी ब्रिटिश सेना में सिपाही के रूप में भर्ती हुए थे। शारीरिक कद काठी मजबूत थी और उनका निशाना अचूक था। बरतानिया सरकार के लिए कई युद्ध में भाग लेकर लोहा मनवाया था। इसलिए सन 1854 में उन्हें 52वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में सूबेदार का पद प्राप्त हुआ था। सन 1856 से भारत में बरतानिया सरकार के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम की तैयारियां जोरों पर थीं और जबलपुर उन दिनों राजा शंकर शाह और रघुनाथ के नेतृत्व में मध्य भारत का केंद्र बिंदु बन गया था।

अंग्रेजों के दुर्व्यवहार से स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े सूबेदार बलदेव तिवारी सन 1857 की है जब जबलपुर में स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि तैयार हो रही थी। गढ़ा पुरवा में मंडला, सिवनी, नरसिंहपुर, सागर, दमोह सहित मध्य भारत के लगभग सभी जमींदार, मालगुजार के साथ 52 गढ़ों से सेनानी भी मिलने आने लगे थे। सन 1856 में सूबेदार बलदेव तिवारी और उनकी पलटन के साथ जबलपुर के डिप्टी कमिश्नर लेफ्टिनेंट क्लार्क सदैव दुर्व्यवहार कर अपमान करता था, जिससे सूबेदार बलदेव तिवारी और पलटन विक्षुब्ध रहती थी। इसलिए सूबेदार बलदेव तिवारी ने बरतानिया सरकार के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम छेड़ने का मन बना लिया था। ऐसे में जबलपुर कैंटोनमेंट क्षेत्र से 52वीं नेटिव इन्फेंट्री के सूबेदार बलदेव तिवारी के साथ कई सैनिक राजा शंकरशाह और कुंवर रघुनाथ शाह से मिलने आते थे। राजा शंकर शाह एवं कुंवर रघुनाथ शाह ने अंग्रेजों के विरुद्ध शक्तिशाली संगठन तैयार कर लिया था। सभी ने सर्वसम्मति से सूबेदार बलदेव तिवारी को संयुक्त सेना का प्रमुख चुन लिया। राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के साथ सूबेदार बलदेव तिवारी का झांसी की रानी लक्ष्मीबाई तात्या टोपे तथा कुंवर साहब से भी संपर्क था। 

18 सितंबर 1857 को राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान के बाद मध्य प्रांत के रजवाड़े परिवार एवं जमीदार और मालगुजारों ने अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम छेड़ दिया दिया। जबलपुर से 52वीं नेटिव इन्फेंट्री के सूबेदार बलदेव तिवारी ने 690 से अधिक सैनिकों को लेकर गढ़ा पुरवा को मुक्त कराकर पाटन के लिए कूच किया। 19 सितंबर 1857 को बलदेव तिवारी अपनी 52 वीं नेटिव इन्फेंट्री के साथ पाटन पहुंच गए और बरतानिया सरकार को अपदस्थ कर स्वतंत्रता का झंडा लहराया और लेफ्टिनेंट मेकग्रिगर को बंदी बना लिया गया। सूबेदार बलदेव तिवारी ने कर्नल जमीसन से जबलपुर में छूटे अपने 10 साथियों को भेजने की मांग की। कर्नल जमीसन ने सभी सैनिकों को इनाम और तनख्वाह बढ़ाने का लालच दिया साथ ही सूबेदार बलदेव तिवारी को आठ हजार रुपये देने का लालच दिया ताकि मेकग्रिगर को सकुशल वापस लाया जा सके परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। सूबेदार बलदेव तिवारी मेकग्रिगर को लेकर कटंगी पहुंचे और कटंगी को जीत लिया। यहां भी बरतानिया सरकार को अपदस्थ कर स्वतंत्रता का झंडा फहराया। कटंगी में लेफ्टिनेंट मेकग्रिगर ने पलटन में फूट डालने की कोशिश की इसलिए सूबेदार बलदेव तिवारी ने उसका वध कर दिया। दो माह तक सूबेदार बलदेव तिवारी के नेतृत्व में पाटन और कटंगी में स्वायत्त सत्ता स्थापित रही। परंतु नवंबर में वॉटसन और जेनकिंस के नेतृत्व में भारी फौज कटंगी आ पहुंची। कई दिनों तक घमासान युद्ध के बाद 14 नवंबर 1857 को सूबेदार बलदेव तिवारी और जेनकिंस के बीच आमने-सामने की लड़ाई हुई जिसमें सूबेदार बलदेव तिवारी ने जेनकिंस का वध कर दिया। इस तरह दोनों अंग्रेज अधिकारियों का वध कर सूबेदार बलदेव तिवारी ने राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान का प्रतिशोध भी ले लिया। इस युद्ध में सूबेदार बलदेव तिवारी को चार गोलियां लगी थीं और जंगल में कोई चिकित्सकीय सुविधा असंभव थी इसलिए उन्होंने अपनी बंदूक से प्राणोत्सर्ग किया। 
ऐसे महायोद्धा जिनसे अंग्रेज कांपते थे। 
सूबेदार बलदेव तिवारी सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दुर्दम्य सेनानायक थे जिन्होंने जबलपुर कमिश्नरी में अंग्रेजों को हर मोर्चे पर मात दी थी। अंग्रेज अधिकारी उनका नाम सुनते ही भयाक्रांत हो जाते थे। ऐसे महान् योद्धा को पूर्व में इतिहास के पन्नों में समुचित जगह नहीं मिल पाई। जिस तरह महारथी मंगल पांडे के शौर्य को याद किया जाता है उसी तरह महारथी बलदेव तिवारी के भी सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के लिए याद किया जाना चाहिए। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव पर सूबेदार बलदेव तिवारी पर प्रथम बार यह शोध प्रस्तुत की जा रही है। सूबेदार बलदेव तिवारी की अमर बलिदान गाथा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का वह पड़ाव है जो चिरकाल तक भारतीयों को गौरव और गर्व की अनुभूति कराता रहेगा।वर्तमान पीढ़ी और भावी पीढ़ी को राष्ट्रवाद का यही संदेश देगा कि मैं रहूं ना रहूं, मेरा यह देश भारत रहना चाहिए। 

By continuing to use this website, you agree to our cookie policy. Learn more Ok