New Delhi/3 मई को दुनिया भर में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। यूनेस्को महासम्मेलन की अनुशंसा के बाद दिसंबर 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 3 मई को प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा की थी। तभी से हर साल 3 मई को ये दिन मनाया जाता है। इस बार इसकी थीम है 'लोकतंत्र के लिए मीडिया: फर्जी खबरों और सूचनाओं के दौर में पत्रकारिता एवं चुनाव'। हर साल 3 मई को दुनिया भर में वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे या विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है।
क्यों मनाया जाता है ये दिन?
इस दिवस का उद्देश्य प्रेस की आजादी के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना है। साथ ही ये दिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखने और उसका सम्मान करने की प्रतिबद्धता की बात करता है। बता दें इस दिवस की मेजबानी हर साल अलग-अलग देश करते हैं। प्रेस की आजादी के महत्व के लिए दुनिया को आगाह करने वाला ये दिन बताता है कि लोकतंत्र के मूल्यों की सुरक्षा और उसे बहाल करने में मीडिया अहम भूमिका निभाता है। इस कारण सरकारों को पत्रकारों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी चाहिए।
भारत में अक्सर प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर चर्चा होती रहती है। 3 मई को मनाए जाने वाले विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर भारत में भी प्रेस की स्वतंत्रता पर बातचीत होना लाजिमी है। भारत में प्रेस की स्वतंत्रता भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 में भारतीयों को दिए गए अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार से सुनिश्चित होती है। विश्व स्तर पर प्रेस की आजादी को सम्मान देने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस घोषित किया गया, जिसे विश्व प्रेस दिवस के रूप में जाना जाता है।यूनेस्को द्वारा 1997 से हर साल 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर गिलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम प्राइज भी दिया जाता है। यह पुरस्कार उस व्यक्ति अथवा संस्थान को दिया जाता है जिसने प्रेस की स्वतंत्रता के लिए उल्लेखनीय कार्य किया हो। 1997 से अब तक भारत के किसी भी पत्रकार को यह पुरस्कार नहीं मिलने की एक बड़ी वजह कई वरिष्ठ पत्रकार पश्चिम और भारत में पत्रकारिता के मानदंडों में अंतर को बताते हैं। भारतीय पत्रकारित में हमेशा विचार हावी होता है, जबकि पश्चिम में तथ्यात्मकता पर जोर दिया जाता है। इससे कहीं न कहीं हमारे पत्रकारिता के स्तर में कमी आती है। इसके अलावा भारतीय पत्रकारों में पुरस्कारों के प्रति जागरूकता की भी कमी है, वे इसके लिए प्रयासरत नहीं रहते।
हालांकि हर साल इसकी एक अलग थीम होती है। बीते साल फर्जी खबरों का मुद्दा दुनिया के सामने एक चुनौती बनकर उभरा था। जिससे ना केवल भारत बल्कि दुनियाभर के देशों को कई संकटों का सामना करना पड़ा। फर्जी खबरों का असर ना केवल चुनाव पर पड़ता है। बल्कि इससे अपराधों में भी वृद्धि होती है। लेकिन फर्जी खबरों की परेशानी से निपटने के लिए दुनियाभर की मीडिया ने बड़े कदम उठाए हैं।
पहली बार कब मनाया गया ये दिन?
अफ्रीका के पत्रकारों ने प्रेस की आजादी के लिए साल 1991 में पहल की थी। उन पत्रकारों ने 3 मई को प्रेस की आजादी के सिद्धांतों से संबंधित एक बयान जारी किया था, जिसे डिक्लेरेशन ऑफ विंडहोक के नाम से जाना जाता है। जिसके बाद पहली बार 1993 को संयुक्त राष्ट्र ने ये दिवस मनाने की घोषणा की।
इस बार विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम का आयोजन इथोपिया की राजधानी आदिस अबाबा में होगा।
कैसे मनाया जाता है?
इस अवसर पर तरह-तरह के कार्यक्रमों का आयोजन होता है। पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाली शख्सियतों को सम्मानित किया जाता है। स्कूल, कॉलेज, सरकारी संस्थानों और अन्य शैक्षिक संस्थानों में प्रेस की आजादी पर वाद-विवाद, निबंध लेखन प्रतियोगिता और क्विज का आयोजन किया जाता है। लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार से अवगत कराया जाता है। इस मौके पर यूनेस्को की ओर से भी पुरस्कार दिए जाते हैं।