- महादेव की बनायी बाँसुरी और उनके और हनुमान के आराध्य की बाँसुरी ही हनुमान जी को पसंद आयी।
- बाँसुरी की मधुर तान छेड़कर अपने आराध्य को मनोभाव संप्रेषित करते हैं।
जबलपुर/आईये जानते हैं कि श्रीकृष्ण और हनुमान जी को "बाँसुरी" ही क्यों पसंद है? और वो इसे कब बजाया करते हैं ? और हनुमान चालीसा बाँसुरी में सुनना क्यों श्रेयस्कर है?..भगवान् विष्णु जी ने द्वापर में पृथ्वी में श्रीकृष्ण के रूप में पूर्ण अवतार लिया..फिर क्या था अपने आराध्य से मिलने सारे देवी - देवता गण विभिन्न स्वरूपों में अवतरित होकर मिलने आते थे, फिर महादेव कहाँ पीछे रहने वाले थे इसलिए वो भी पृथ्वी पर मिलने के लिए तैयार हो गये पर उपहार क्या दें!!! इस पर माता पार्वती के साथ विचार किया जा रहा था,तभी उनका ध्यान अपने पास रखी महर्षि दधीचि की एक अस्थि पर गया, ये उस महान् ऋषि दधीचि की अस्थि थी जिनकी अस्थियों से भगवान् विश्वकर्मा जी ने पिनाक, गांडीव, शारंग धनुष और इंद्र का वज्र बनाया था। महादेव ने उसी अस्थि से "बाँसुरी" का निर्माण किया और गोकुल जाकर श्री कृष्ण को भेंट की जो आजीवन श्री कृष्ण ने अपने पास रखी। गौरतलब है कि जब राधा रानी ने श्रीकृष्ण से बांसुरी को सदैव साथ रखने और बजाने को लेकर मनोविनोद किया तब श्रीकृष्ण ने राधा रानी जी को यह रहस्य उजागर किया। उसके बाद राधा रानी के लिए श्रीकृष्ण की वह बांसुरी आस्था का प्रतीक बन गई और फिर तो राधा रानी ही श्रीकृष्ण से बांसुरी बजाने का आग्रह करतीं!!! जब हनुमान जी ने द्वापर में श्रीकृष्ण का सामना किया तब उन्हें कृष्ण में श्रीराम के दर्शन हुए।आगे कथा विस्तार में है!सारांश ये कि महादेव की बनायी बाँसुरी और उनके और हनुमान के आराध्य की बाँसुरी ही हनुमान जी को पसंद आयी और जब हनुमान जी सर्वाधिक प्रसन्न और भक्ति भाव में भावुक होते हैं, तो बाँसुरी की मधुर तान छेड़कर अपने आराध्य को मनोभाव संप्रेषित करते हैं.. इसलिए बाँसुरी की धुन में हनुमान चालीसा को सुनना सर्वाधिक श्रेयस्कर माना जाता है।
जय श्री महाकाल, जय श्री राम, जय श्री हनुमान; पूरी कथा फिर कभी विस्तार से|
डॉ. आनंद सिंह राणा,
श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत।