Dhaka/बांग्लादेश/बांग्लादेश में विगत चार दिन से जो घटनाक्रम घटित हो रहा है वह अत्यंत भयावह और चिंतनीय है। परंतु कल जो हुआ वह किसी भी समाज के लिए अत्यंत शर्मनाक, दुखदाई, असहनीय,अमर्यादित और संवेदनशील है ।सच कहूं तो यह सभी शब्द इसके लिए उपयुक्त नहीं लग रहे है ।लोकतंत्र बहाली के नाम पर बांग्लादेश में कट्टरपंथियों व विदेशी ताकतों की शह पर भ्रमित युवाओं ने नग्नता, बेशर्मी और अराजकता का जो नंगा नाच किया वह संपूर्ण मानवीयता को लज्जित कर देने वाला है । कल प्रदर्शनकारीयो ने शेख हसीना के घर में घुस उनकी साड़ीया, ब्लाउज और अंतर्वस्त्रों को भी नहीं बक्शा। आंदो लनकारी उनके अंतर्वस्त्रों को हवा में लहरा - लहरा कर संपूर्ण विश्व की हर एक महिला की गरिमा ,आत्म सम्मान को रौंद रहे थे। ये कहीं से भी लोकतंत्र और आरक्षण खत्म करने की मांग पर जुटे आंदोलनकारी युवा नहीं थे यह विकृत लोगों की भीड़ लगी जिनका विवेक शून्य हो चुका है । जिन्हें नहीं पता यह क्या कर रहे हैं?
बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर कई दिनों से जारी हिंसक प्रदर्शन ने सोमवार को निर्णायक मोड़ अपना लिया और ऐसे हालात बन गए कि प्रधानमंत्री शेख हसीना को 45 मिनट के अंदर देश छोड़ना पड़ा तथा तख्तापलट हो गया। हसीना के इस्तीफा दिए जाने के बाद से सेना ने मोर्चा संभाल लिया और अब खबर यह है कि नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को प्रधानमंत्री बनाने की तैयारी चल रही है।
ये प्रदर्शनकारी शेख हसीना से खफा थे ।जब वे इस्तीफा देकर देश छोड़कर चली गई तो वह पीएम आवास में जुड़कर हर एक चीज नष्ट करने लगे । उनके आवास में भीड़ ने लूटपाट की, तोड़फोड़ की ।शेख मुजीब की मूर्ति तक को तोड़ दिया गया और उन्हें अनेक तरह से अपमानित किया गया।
जिन शेख मुजीबुर रहमान ने अपनी और अपने परिवार की जान बांग्लादेश की आजादी के लिए दे दी थी आज उन्ही की मूर्ति पर हथौड़े चलाएं जा रहे हैं।
हिंदू निशाने पर क्यों -
चूंकि कट्टरपंथी ताकतों की अगुवाई और समर्थन पर बांग्लादेश में तख्ता पलट किया गया उनका मकसद ही सम्पूर्ण विश्व में इस्लाम को फैलाना है। जमाते इस्लामी का उद्देश्य ही इस्लामी मूल्यों के अनुसार समाज बनाना है।बांग्लादेश को कुरान के संविधान के साथ शरिया राष्ट्र में बदलना है। इन कट्टरपंथी ताकतों के निशाने पर सदैव सनातन हिंदू धर्म रहता है। इसलिए आज से नहीं बल्कि पहले से ही वहा हिंदू अल्पसंख्यक निशाने पर रहे है । भारत की साल 1901 की जनगणना रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार संयुक्त भारत के एक प्रांत के तौर पर पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) में हिंदुओं की आबादी 30 प्रतिशत से ज्यादा थी लेकिन 1947 में बंटवारे के बाद पूर्वी बंगाल के पाकिस्तान में चले जाने और फिर 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्र राष्ट्र बनने के समय भी वहा के हिंदुओं को सबसे ज्यादा पीड़ा भोगनी पड़ी।आरक्षण से प्रारंभ हिंसा ने फिर से इन कट्टरपंथियों को हिंदुओं पर अत्याचार और हिंसा करने का मौका दे दिया है। इसके पश्चात जब प्रदर्शनकारियो को यह खबर मिली कि शेख हसीना भारत चली गई है और भारत ने उन्हें शरण दी है तो उनका गुस्सा हिंदुओं पर और भी भड़क गया और हिंदुओं पर आक्रमण और भी तीव्र गये। वहा के हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले ,हिंदू मंदिरों पर हमले और आगजनी की खबरें लगातार आने लगी। विदेश मंत्री एस. जयशंकर का राज्यसभा में बयान और इसके पहले सर्व दलीय बैठक में उनका यह कथन भारत की चिंता को स्पष्ट करता है कि हिंदुओं पर जिस तरह से हमले करके उनके घरों को जलाया जा रहा है, उनकी संपत्ति नष्ट की जा रही है इससे प्रतीत होता है कि वहां अब हिंदू सुरक्षित नहीं है।
बांग्लादेश की 17 करोड़ की आबादी में एक करोड़ 30 लाख के लगभग हिंदू है। शेख हसीना खुद मुस्लिम थी और अगर उनसे दिक्कत भी थी आंदोलनकारी द्वारा हिंदुओं को निशाना क्यों बनाया जा रहा है। आज बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकते जिस तरह हिंदुओं पर जुल्म और अत्याचार कर रही हैं, मंदिरों पर आक्रमण किये जा रहे हैं, उनके घरों को जलाया जा रहा है तो आज मानवाधिकारो की बात करने वाले देश और बुद्धिजीवी चुप क्यूं है ? कल एक स्त्री की गरिमा को सरे आम तार- तार किया गया उस पर फेमिनिज्म के पैरोकार कहा है? वही इस तरह के अत्याचार मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर होते तो उनके मानवाधिकारों को लेकर पूरा वैश्विक समुदाय और तथाकथित बुद्धिजीवी तंत्र चंद मिनटों में सक्रिय और मुखर हो उठता।
हिंसा की वजह -
बांग्लादेश में स्वतंत्रता सेनानियों के रिश्तेदारों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाता है। इस आरक्षण के विरोध में 1 जुलाई से इस प्रदर्शन की शुरुआत हुई। इससे पहले 5 जून को ढाका हाई कोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों के लिए आरक्षण की व्यवस्था को फिर से लागू करने का आदेश दिया था ।यही वजह बनी जिसके बाद पूरे बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर विद्रोह शुरू हो गया सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था में सुधार को लेकर बांग्लादेश के शहरों में विरोध प्रदर्शन देखने को मिला। प्रदर्शनकारी और पुलिस के बीच हुई झड़प में लगभग 300 से ज्यादा लोगों की मृत्यु हुई।
लेकिन यहां बहुत महत्वपूर्ण बात यह है कि छात्र मौजूदा आरक्षण प्रणाली में सुधार करते हुए प्रतिभा के आधार पर सीट भरने की मांग कर रहे थे लेकिन जिस आरक्षण व्यवस्था को खत्म करने की मांग कर रहे थे वह मुद्दा शांत हो गया था। आरक्षण के इस मुद्दे को देश में अराजकता फैलाने और तख्ता पलट करने में एक टूल की तरह कट्टरपंथी ताकतों ने प्रयोग किया। छात्रों का आंदोलन ठंडा हो जाने पर जमाते इस्लामी पार्टी ने इसको फिर से हाईजैक किया और इस पार्टी के छात्र संगठन ने इसे पूरी तरह से युवाओं के बीच में फैला दिया। रिपोर्ट के अनुसार पिछले 15 वर्षों में इस पार्टी ने चुपचाप अपने स्थिति में सुधार करते हुए अपने सहयोगी सदस्यों की संख्या 2008 में जो 1.3 करोड़ थी उसे बड़ा कर दो करोड़ 29 लाख कर लिया है। शेख हसीना इस संगठन की ताकत का आकलन सही तरह से नहीं कर पाई और जो हुआ वह सारा विश्व देख रहा है।
जिस आंदोलन को लोकतंत्र बहाली के नाम पर प्रचारित प्रसारित किया जा रहा है और कहा जा रहा है कि जनता ने तख्ता पलट दिया वहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि बांग्लादेश की कुल आबादी 17 करोड़ है जिसमें से सिर्फ 20 लाख लोग ही इस आंदोलन में शामिल है। अर्थात 1.02 प्रतिशत।लेकिन इस भीड़ तंत्र को विदेशी ताकतों, आईएसआई समर्थित जमाते इस्लामी और चीन, पाकिस्तान का पूरा सपोर्ट था जिस कारण से वह यह सब करने में सफल रही। बांग्लादेश में जो हुआ और जो हो रहा है वह कट्टरपंथी ताकतों और उनके मंसूबों को कम आंकने वाले के लिए एक सबक है।
प्रो मनीषा शर्मा
लेखक और शिक्षाविद्
डीन व्यवसायिक शिक्षा संकाय
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जजा विवि,अमरकंटक