केदारनाथ/प्रसिद्ध धार्मिक स्थल देवों के देव महादेव केदारनाथ, भारत के उत्तराखंड राज्य में रुद्रप्रयाग जिले से 80 किमी दूर मन्दाकिनी नदी के तट पर स्थित है। यह हिन्दू धर्म के चार धामों में से एक है जो भगवान शिव को समर्पित है। बाबा केदारनाथ का मंदिर बद्रीनाथ के मार्ग में स्थित है। केदारनाथ मंदिर हिमालय की गोद में बसा हुआ है जो समुद्र तल से लगभग 3,583 मीटर (11,755 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया यह मंदिर भूरे रंग का है जो 6 फीट ऊंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग माना जाता है। यह स्थान हिमालय की ऊँचाई और ठंड के कारण बहुत ही विशेष है। केदारनाथ धाम तीनों ओर से पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ करीब 22000 फीट ऊंचा केदारनाथ पहाड़ी, दूसरी तरफ 21,600 फीट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ 22,700 फीट ऊंचा भरतकुंड। यह स्थल इन तीन पहाड़ियों से बहने वाली नदियों का संगम है जिनमें मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी नदी शामिल है। यह तीर्थ भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। जिस प्रकार कैलाश का महत्व है उसी प्रकार का महत्व शिव जी ने केदार क्षेत्र को भी दिया है।
केदारनाथ मंदिर 85 फीट ऊंचा, 187 फीट लंबा और 80 फीट चौड़ा है। बेहद मजबूत पत्थरों से बनी इस मंदिर की दीवारें 12 फीट मोटी है। उसकी विशालकाय छत चार विशाल पाषाण स्तंभों पर टिकी है। यह विशालकाय छत एक ही पत्थर की बनी है। यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि इतने भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर तराश कर कैसे मंदिर की शक्ल दी गई होगी। खासकर यह विशालकाय छत कैसे स्तंभों पर राखी गई होगी। इन पत्थरों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का प्रयोग किया गया है। इसी तकनीक और मजबूती के कारण मंदिर नदी के बीचोंबीच खड़े रह पाने में कामयाब हुई है। केदारनाथ मंदिर हिंदुओ के सबसे प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। कहते हैं भारत के चारधामों में से एक बद्रीनाथ की यात्रा तब तक सफल नहीं मानी जाती जब तक केदारनाथ की संपूर्ण यात्रा न कर ली जाय।
किंवदंतियों के अनुसार, केदारनाथ मंदिर का निर्माण पांडवों ने महाभारत के समय किया था। पांडवों ने भगवान शिव की तपस्या की थी ताकि वे अपने पापों का प्रायश्चित कर सकें। कहते हैं कि भगवान शिव ने उन्हें केदारनाथ में दर्शन दिए और यहीं पर शिवलिंग प्रकट हुआ। केदारनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कहते हैं केदारनाथ के मार्ग से ही युधिष्ठिर स्वर्ग गए थे। यहाँ भगवान शिव की पूजा केदार के रूप में की जाती है। यहाँ स्थित स्वयंभू शिवलिंग अति प्राचीन है। शिवलिंग की पूजा के लिए साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मान्यता है कि केदारनाथ धाम की यात्रा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। आदि गुरु शंकराचार्य जी ने इस पवित्र मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
2013 की बाढ़:
2013 में केदारनाथ में अचानक आई भयंकर बाढ़ और भूस्खलन से काफी जान-माल का नुकसान हुआ था। इस ऐतिहासिक मन्दिर का मुख्य हिस्सा एवं सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित रहे लेकिन मन्दिर के प्रवेश द्वार सहित उसके आस-पास का क्षेत्र पूरी तरह तबाह हो गया। बाढ़ के बाद सरकार और स्थानीय प्रशासन ने यहाँ पुनर्निर्माण का कार्य किया और अब यहाँ सभी आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
केदारनाथ यात्रा के लिए उपयुक्त समय:
केदारनाथ यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय मई से अक्टूबर तक होता है। सर्दियों में यहाँ भारी बर्फबारी होती है जिसके कारण मंदिर को बंद कर दिया जाता है। इसलिए दिसंबर से फरवरी तक केदारनाथ यात्रा नहीं की जा सकती। मंदिर को अक्षय तृतीया के दिन खोला जाता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन बंद किया जाता है।
केदारनाथ में अन्य आकर्षण:
केदारनाथ और इसके आसपास कई खूबसूरत और पवित्र जगहें हैं जो यात्रियों और भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। यह सभी स्थान प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्व के कारण प्रसिद्ध हैं। यहाँ कुछ प्रमुख स्थल हैं जैसे-
- केदारनाथ मंदिर: भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर भारत के चार धामों में से एक है और हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र स्थान है।
- भीमबली: केदारनाथ से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह स्थान धार्मिक और प्राकृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
- वासुकी ताल: केदारनाथ से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह एक सुंदर झील है जो पर्वतों और हरियाली से घिरी हुई है।
- गौरीकुंड: यह केदारनाथ यात्रा का प्रारंभिक बिंदु है, जहां गर्म पानी के कुंड और गौरी माता का मंदिर है।
- चोपता: केदारनाथ से कुछ दूरी पर स्थित यह जगह ट्रेकिंग और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। इसे 'मिनी स्विट्जरलैंड' भी कहा जाता है।
- तुंगनाथ मंदिर: यह पंच केदार श्रृंखला में आता है और दुनिया का सबसे ऊँचा शिव मंदिर है।
- रुद्रप्रयाग: यह केदारनाथ और बद्रीनाथ के बीच का एक प्रमुख स्थान है जहां अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों का संगम होता है।
- अगस्त्यमुनि: मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित यह स्थान ऋषि अगस्त्य के तपोस्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
ये सभी स्थान न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि प्राकृतिक सुंदरता और शांति भी प्रदान करते हैं।
केदारनाथ यात्रा मार्ग:
केदारनाथ पहुंचने के लिए कई माध्यमों का उपयोग किया जा सकता है। जैसे-
- हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है, जो केदारनाथ से लगभग 239 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी या बस लेकर गौरीकुंड पहुंच सकते हैं।
- रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है, जो केदारनाथ से लगभग 216 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से गौरीकुंड के लिए बस या टैक्सी उपलब्ध हैं।
- सड़क मार्ग: केदारनाथ सड़क मार्ग से भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। प्रमुख शहरों से बस या टैक्सी द्वारा गौरीकुंड तक पहुंचा जा सकता है। दिल्ली, हरिद्वार, ऋषिकेश, और देहरादून से नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
केदारनाथ पहुँचने के लिए पहले गौरीकुंड तक पहुँचना होता है। गौरीकुंड से केदारनाथ की दूरी लगभग 16 किलोमीटर है। यहाँ से आप पैदल यात्रा कर सकते हैं, या घोड़े/खच्चर और पालकी का उपयोग कर सकते हैं। हाल के वर्षों में हेलिकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है जो गौरीकुंड या फाटा से केदारनाथ तक यात्रियों को ले जाती है।
यात्रा की तैयारी:
केदारनाथ की यात्रा धार्मिक और प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण और मनोरम होती है, इसलिए यात्रा की अच्छी तैयारी और सावधानी बरतें। केदारनाथ यात्रा के लिए आवश्यक तैयारियां इस प्रकार है-
- स्वास्थ्य जांच: केदारनाथ यात्रा के लिए शारीरिक रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है, क्योंकि यह ट्रेकिंग यात्रा है।
- पंजीकरण: यात्रा के लिए सरकार द्वारा निर्धारित पंजीकरण आवश्यक है, जिसे ऑनलाइन या यात्रा के आरंभिक बिंदु पर किया जा सकता है।
- जलवायु के अनुसार वस्त्र: मौसम के अनुसार गर्म कपड़े, बारिश का सामान, और ट्रेकिंग के लिए उचित जूते साथ में रखें।
- दवाइयाँ और प्राथमिक चिकित्सा किट: किसी भी आपात स्थिति के लिए आवश्यक दवाइयाँ और प्राथमिक चिकित्सा किट साथ में रखें।
इस प्रकार केदारनाथ धार्मिक स्थल के साथ-साथ एक अद्वितीय प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर भी है। यहाँ की यात्रा आत्मिक शांति और प्राकृतिक सौंदर्य का अनोखा अनुभव देती है।