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Dharm Sanskriti / Culture / India / Madhya Pradesh / Jabalpur
पाश्चात्य नव वर्ष : अवांछनीय कुकृत्यों से शुभारंभ होना दुर्भाग्यपूर्ण

By  AgcnneduNews...
Sun/Dec 31, 2023, 03:22 AM - IST   0    0
  • मीन राशि में सूर्य बुध की युति बुधादित्य योग का निर्माण कर रही है जबकि गुरु चंद्रमा मिलकर गजकेसरी योग का निर्माण कर रहे हैं।
  • 1 जनवरी 2024 से प्रारंभपाश्चात्य नव वर्ष जिसे शुभ बनाने के लिए आमतौर पर मांस - मदिरा के सेवन और विभिन्न प्रकार की अश्लील पार्टियों के साथ भयानक आतिशबाजी कर पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण तथा प्रकृति संरक्षण के संदेश दिए जाते हैं।
Jabalpur/

जबलपुर/हिंदू संवत्सर पिंगल, गज केसरी योग, नवपंचम राजयोग एवं बुधादित्य योग के साथ चल रहा है, इन अद्भुत संयोगों के साथ अयोध्या जी में घट घट वासी प्रभु रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा, पौष शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम संवत 2080 तदनुसार 22 जनवरी 2024 को की जाएगी। अतः 1 जनवरी 2024 को कैलेंडर बदलने के अतिरिक्त पाश्चात्य नव वर्ष मनाने का कोई औचित्य नहीं है। 

पाश्चात्य नव वर्ष 1 जनवरी 2024 से प्रारंभ हो रहा है, जिसे शुभ बनाने के लिए आमतौर पर मांस - मदिरा के सेवन और विभिन्न प्रकार की अश्लील पार्टियों के साथ भयानक आतिशबाजी कर पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण तथा प्रकृति संरक्षण के संदेश दिए जाते हैं। यह कितना दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि पाश्चात्य नव वर्ष का शुभारंभ अवांछनीय कुकृत्यों से होता है। हिन्दू संस्कृति में चैत्र नवरात्र के पावन और पुनीत अवसर पर हिन्दू नव वर्ष, गुड़ी पड़वा सहित विभिन्न भारतीय पर्वों की महान् श्रृंखला आरंभ होती है। आध्यात्मिक वातावरण में शुचिता के साथ नव संवत्सर प्रारंभ होता है, जिसमें विश्व कल्याण की भावना को लेकर सभी दुर्व्यसनों से मुक्त होकर शक्ति की उपासना की जाती है। भारतीय पंचांग, विश्व के सभी पंचांगों का मूलाधार है। विक्रम संवत् 2080 (सन् 2023 ) चल रहा है यह अत्यंत कल्याणकारी है क्योंकि गज केसरी, नवपंचम और बुधादित्य योग बन बने हैं। यह नव संवत्सर "पिंगल" संवत्सर के रुप में शिरोधार्य है।सम +वत्सर (संवत्सर) का तात्पर्य पूर्ण वर्ष से है। प्रचलित संवत्सर के राजा बुद्ध मंत्री शुक्र और मेघेश गुरु हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार  न्याय देव शनि और देवगुरु बृहस्पति स्वराशि में विराजमान हैं। शनि का मंगल और केतु दोनों के साथ नव पंचम राजयोग बना हुआ है। मीन राशि में सूर्य बुध की युति बुधादित्य योग का निर्माण कर रही है जबकि गुरु चंद्रमा मिलकर गजकेसरी योग का निर्माण कर रहे हैं। 

राजा विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांता शकों पर विजय के उपलक्ष्य में ईसा पूर्व सन् 57 में विक्रम संवत् (भारतीय नव संवत्सर) आरंभ किया था, जिसे भारतीय खगोलविदों और वैज्ञानिकों ने विकसित किया था। यह तिथि पत्रक (कैलेंडर) हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होता है। 

12 माह का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत् से ही आरंभ हुआ। महीने का लेखा सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। विक्रम पंचांग (कैलेंडर) की इस अवधारणा को यूनानियों के माध्यम से अरब और अंग्रेजों ने अपनाया। इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। संवत्सर के पाँच प्रकार हैं सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास। विक्रम संवत् में सभी का समावेश है। विक्रम संवत के बाद सन् 78 में शक संवत् प्रारंभ हुआ। वर्ष के पाँच प्रकार होते हैं। मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क आदि सौरवर्ष के माह हैं। यह 365 दिनों का है। इसमें वर्ष का प्रारंभ सूर्य के मेष राशि में प्रवेश से माना जाता है। फिर जब मेष राशि का पृथ्वी के आकाश में भ्रमण चक्र चलता है तब चंद्रमास के चैत्र माह का शुभारंभ हो जाता है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ आदि चंद्रवर्ष के माह हैं। चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है, जो चैत्र माह से शुरू होता है। चंद्र वर्ष में चंद्र की कलाओं में वृद्धि हो तो यह 13 माह का होता है। जब चंद्रमा चित्रा नक्षत्र में होकर शुक्ल प्रतिपदा के दिन से बढ़ना प्रारंभ करता है तभी से हिंदू नववर्ष का शुभारंभ माना जाता है। सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है। इन दस दिनों को चंद्रमास ही माना जाता है। फिर भी ऐसे बढ़े हुए दिनों को मलमास या अधिमास कहते हैं। लगभग 27 दिनों का एक नक्षत्रमास होता है। इन्हें चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा आदि कहा जाता है।वैंसे 88 नक्षत्र हैं परंतु चंद्र पथ पर 27 नक्षत्र ही आते हैं। सावन वर्ष 360 दिनों का होता है। इसमें एक माह की अवधि पूरे तीस दिन की होती है। 

ज्योतिष में बृहस्पति और शुक्र ग्रह को मंगल कार्य के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। संवत्सर का संबंध बृहस्पति ग्रह की गति, राशि परिवर्तन, उसके उदय और अस्त से है। जैसे धरती के 12 मास होते हैं उसी तरह बृहस्पति ग्रह के 60 संवत्सर होते हैं। प्रतिपदा वाले दिन से 60 संवत्सरों में से एक नया संवत्सर प्रारंभ होता है। इसीलिए इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। संवत्सर अर्थात् बारह महीने की कालविशेष अवधि। बृहस्पति के राशि बदलने से इसका आरंभ माना जाता है। 
60 संवत्सरों के नाम इस प्रकार हैं - प्रभव, विभव, शुक्ल, प्रमोद, प्रजापति, अंगिरा, श्रीमुख, भाव, युवा, धाता, ईश्वर, बहुधान्य, प्रमाथी, विक्रम, वृषप्रजा, चित्रभानु, सुभानु, तारण, पार्थिव, अव्यय, सर्वजीत, सर्वधारी, विरोधी, विकृति, खर, नंदन, विजय, जय, मन्मथ, दुर्मुख, हेमलम्बी, विलम्बी, विकारी, शार्वरी, प्लव, शुभकृत, शोभकृत, क्रोधी, विश्वावसु, पराभव, प्ल्वंग, कीलक, सौम्य, साधारण, विरोधकृत, परिधावी, प्रमादी, आनंद, राक्षस, नल, पिंगल, काल, सिद्धार्थ, रौद्रि, दुर्मति, दुन्दुभी, रूधिरोद्गारी, रक्ताक्षी, क्रोधन और अक्षय।

बृहस्पति ग्रह के वर्षों के आधार पर युगों के नाम सूर्य सिद्धान्त के अनुसार संवत्सर बृहस्पति ग्रह के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं। 60 संवत्सरों में 20 -20-20 के तीन हिस्से हैं जिनको ब्रह्माविंशति (1-20), विष्णुविंशति (21-40) और शिवविंशति (41-60) कहते हैं। बृहस्पति की गति के अनुसार प्रभव आदि साठ वर्षों में बारह युग होते हैं तथा प्रत्येक युग में पांच-पांच वत्सर होते हैं। बारह युगों के नाम हैं– प्रजापति, धाता, वृष, व्यय, खर, दुर्मुख, प्लव, पराभव, रोधकृत, अनल, दुर्मति और क्षय। प्रत्येक युग के जो पांच वत्सर हैं, उनमें से प्रथम का नाम संवत्सर है। दूसरा परिवत्सर, तीसरा इद्वत्सर, चौथा अनुवत्सर और पांचवा युगवत्सर है। 12 वर्ष बृहस्पति वर्ष माना गया है। बृहस्पति के उदय और अस्त के क्रम से इस वर्ष की गणना की जाती है। इसमें 60 विभिन्न नामों के 361 दिन के वर्ष माने गए हैं। बृहस्पति के राशि बदलने से इसका आरंभ माना जाता है। 

विक्रम संवत में नववर्ष की शुभारंभ चंद्रमास के चैत्र माह के उस दिन से होता है जिस दिन ब्रह्म पुराण अनुसार ब्रह्मा ने सृष्टि रचना की शुरुआत की थी। इस दिन को ही सतयुग का प्रारंभ, भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार, नवरात्र का आरंभ, भगवान् राम का राज्याभिषेक के, दिन के रुप में शिरोधार्य किया गया है।इसी दिन से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है। 

ज्योतिषियों के अनुसार इसी दिन से चैत्री पंचांग का आरम्भ माना जाता है, क्योंकि चैत्र मास की पूर्णिमा का अंत चित्रा नक्षत्र में होने से इस चैत्र मास को नववर्ष का प्रथम दिन माना जाता है।रात्रि के अंधकार में नव संवत्सर का स्वागत नहीं होता। नया वर्ष सूर्य की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है। नववर्ष के ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से घर में सुगंधित वातावरण कर दिया जाता है। घर को ध्वज, पताका और तोरण से सजाया जाता है। शुभ कार्यों और नवीन योजनाओं का क्रियान्वयन होता है।प्रत्येक हिन्दू,विश्व कल्याण की भावना के आलोक में नव संवत्सर की बधाईयाँ प्रेषित करता है। हिन्दू नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, विक्रम संवत 2081 तदनुसार 9 अप्रैल 2024 से प्रारंभ होगा। 

डॉ. आनंद सिंह राणा,

विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग, श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत

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