अज्ञोऽपि तज्ज्ञतामेति,
शनैः शैलोऽपि चूर्ण्यते ।
बाणोप्येति महालक्ष्यम्
पश्याभ्यासविजृम्भितम् ॥
- योगवासिष्ठ 7/67/26
भावार्थ- अभ्यास की शक्ति तो देखो-निरंतर अभ्यास से किसी विषय को न जानने वाला उस विषय का ज्ञाता हो जाता है, पर्वत भी धीरे-धीरे खींचकर चूर्ण बना जाता है और बाण भी अपने सूक्ष्म लक्ष्य तक पहुंच जाता है।