- नेताजी का देहांत 1945 में प्लेन क्रैश से हुआ
- नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिवार वाले अभी भी रेमेंस कि डीएनए टेस्ट मांग रहे हैं
नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के सबसे बड़े लीडर और उनका अचानक से गायब हो जाना भारत की सबसे बड़ी मिस्त्री कई सालों से हमें यह बताया गया है कि नेताजी का अंत भारत के बाहर एक प्लेन क्रैश में हुआ लेकिन क्या यह बात पूरी तरह से सच है एविडेंस क्या कहते हैं. अगर नेताजी का देहांत 1945 में प्लेन क्रैश से हुआ था तो 1967 तक उनके घर पर और उनकी फैमिली पर गवर्नमेंट ने नजर क्यों रखी?
सुभाष बाबू के रिमेन्स की आज तक डीएनए टेस्ट क्यों नहीं हुई?आखिर क्यों पुरे भारत से सच छिपाया जा रहा है? बात है 1945 कि जब पूरी दुनिया को एक शॉकिंग न्यूज़ मिली थी, मिस्टर सुभाष चंद्र बोस डेड रीजन बताया गया एक प्लेन क्रैश. लेकिन गौरतलब बात यह है कि कई देशों की मीडिया ने यह जानने की कोशिश की जिस हॉस्पिटल में सुभाष बाबू ने दम तोड़ा उस हॉस्पिटल में जाकर ऑन ग्राउंड रिपोर्टिंग करने की कोशिश की, उनको ना तो परमिशन मिली और ना ही एक सिंगल फोटो तक
एक खास बात तो यह है कि इतने बड़े ग्लोबल आइकॉन जो जापान,जर्मनी, रसिया के लीडर्स के साथ भारत के आजादी के बारे में स्ट्रेटेजी डिस्कस करते थे उनका डेथ सर्टिफिकेट है है नहीं, डेथ सर्टिफिकेट है तो इचिरो ओकुरा नाम क़े एक जापनिस सोल्जर का है,सुभास बाबू का क्या हुआ?
इंक्वायरी शुरू हुई सन 1949 में जो आजादी के सिर्फ 2 साल बाद पंडित जवाहरलाल नेहरु जी ने खुद हिस्टोरियन प्रतुल चंद्र गुप्ता जी को अप्वॉइंट किया था गुप्ता जी का यही गोल था कि इंडियन नेशनल आर्मी पर रिसर्च करें, पर उनका भारत की आजादी में क्या कॉन्ट्रिब्यूशन था इस पर किताब लिखे.
यह सारा रिसर्च कुछ महीने नहीं 3 साल तक चला 490 pages कि म्यान्युअल स्क्रिप्ट रेडी थी जिनमे INA क़े मिलट्री ऑप्रेशन क़े बारे मे पूरा ज्ञान था, लोगों को लगा कि अब नेताजी और आजाद हिंद फौज का असली कॉन्ट्रिब्यूशन लोगों तक पहुंचेगा, लेकिन यह बुक पब्लिश ही नहीं हुई.
क्यों ऐसे क्या सिकरेट्स है उस किताब में? इसके जवाब आज तक नहीं मिले,कई लोग मानते हैं कि सुभाष बाबू कई दिन तक रशिया मे थे जिंदा थे.
1985 तक अलग-अलग गवर्नमेंट ऑफिशियर को उनके बारे में जानकारी थी, नेहरू जी की सिस्टर विजयालक्ष्मी पंडित सोवियत संघ की एंबेसीडर थी उनके रसिया के एक विजिट के बाद एक कहानी ऐसी बताई जाती है कि जहां लोकल्स कहते हैं कि पब्लिक मीटिंग में उन्होंने ऐसे कहा था…. रसिया में मैं एक ऐसे व्यक्ति से मिली जिनका नाम सुनने पर पूरा देश 15 अगस्त1947 क़े आजादी क़े बाद जितना खुश हुआ था उससे भी ज्यादा खुश हो जायेगा.
लेकिन यह स्पीच कंप्लीट होने से पहले ही नेहरु जी ने उन्हें रोक लिया, सच से हम सबको इतना दूर क्यू रखा जा रहा है.
1955 शाहनवाज़ कमीशन,1970 खोसला कमीशन भारत ने दो बार नेताजी के डिसअपीरियंस की मिस्ट्री के बारे में इन्वेस्टिगेशन हुई, और दोनों बार उन्होंने कांन्क्लुड किया कि नेताजी की डेथ तायवान में प्लेन क्रैश से हुई. और फिर 1999 और एक इन्वेस्टिगेशन शुरू हुआ मुखर्जी का मिशण जहाँ यह कहा गया कि सुभाष बाबू की डेट एक प्लेन क्रैश में होना पॉसिबल ही नहीं है, पिछले दो इन्वेस्टिगेशन भारत में ही हुए थे, पर यह इन्वेस्टिगेशन ताइवान में ऑन ग्राउंड ही हुआ था. और ऑन ग्राऊंड इन्वेस्टिगेशन के बाद यह पता चला कि 1945 में ताइवान ऐसे किसी प्लेन क्रैश का रिकॉर्ड ही नहीं है.आज की टेक्नोलॉजी काफी एडवांस हो गई है साइंस की हेल्प से मिस्त्री को सॉल्व किया जा सकता है, तो टोकीओ में रैंकोजी टेंपल में जो एशेष रखे गए हैं जिन्हे सुभाष बाबू क़े रेमेंस कहते है वह उनके एशेष कैसे हो सकते हैं?
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिवार वाले अभी भी रेमेंस कि डीएनए टेस्ट मांग रहे हैं, जिससे यह प्रूफ हो सकता है कि आखिर उस प्लेन में वह थे या नहीं, कुछ लोग मानते हैं कि नेताजी और कहीं नहीं भारत ही लौट आए थे लेकिन सच किसी को पता नहीं.
2016 में सरकार ने ऐसे कई फाइल्स पब्लिक कर दिए थे जिनमें नेताजी के बारे में सिकरेट इंफॉर्मेशन है लेकिन यह डॉक्यूमेंट भी इनकंप्लीट है, इतने इंपॉर्टेंट डाक्यूमेंट्स डिस्ट्रॉय हो गए या कर दिए गए हैं, लेकिन नेताजी इतने इंपॉर्टेंट क्यों, नेताजी के इतने दुश्मन क्यों?
सिर्फ 30,000 ब्रिटिश 30 करोड़ भारतीयों पर राज कैसे कर सकते हैं यह इंपॉसिबल लगता है क्योंकि यह इंपॉसिबल है, यह पॉसिबल तभी हुआ जब ब्रिटिश शासन ने एक ट्रिक का इस्तेमाल किया उन्होंने इन्ही 30 करोड़ भारतीयों को अपनी सेना में शामिल कर लिया. हमारे वीर उनकी ताकत बन गई थी और सच तो यह है कि ब्रिटिश 1857 की लड़ाई से ही वीरों से डरते थे.
कोलकाता के ब्रिटिश गवर्नरनल जनरल ने खुद कहा था अगर हर एक भारतवासी मुट्ठी भर मिट्टी अंग्रेजों पर एक साथ डाल दे तो पूरा एंपायर दफन हो जाएगा और नेता जी ने ब्रिटिशओके इसी डर को पहचाना था. नेताजी की इस मिस्टेरियस डीस्सअप्पेअरन्स क़े बाद भी नेताजी As a legend भारत की आर्म फोर्सेस में जिन्दा थे.
1946 क़े रॉयल नवल मुटिनी इस बात का सबूत है, अगर नेता जी जिंदा होते, भारत में होते, तो भारत के प्राइममिनिस्टर हो सकते थे,और इस फैक्ट की वजह से उन्होंने देश क़े बाहर ही नहीं देश क़े अंदर भी कई दुश्मन बने थे, नेताजी भारत को लिड करने क़े लिए इस लेवल तक तयार थे की भारत की इकोनामिक पॉलिसी कैसी होनी चाहिए, इंडस्ट्राइलाइजेशन कितना और कहां-कहां होना चाहिए, हमारे देश का मिशन क्या होना चाहिए यह भी वह जानते थे. अगर नेताजी जिंदा होते तो भारत आज कई साल आगे होता.
दुख की बात यह है कि नेताजी के साथ साथ आजाद हिंद फौज का हमारे भारत के लिए कॉन्ट्रिब्यूशन आज हमारे हिस्ट्री बुक्स में से मिसिंग है यातो बस एक लाइन बनकर बचा है. नेताजी के बलिदानों को और उनके जवानों का बलिदान को हम कभी नहीं भूल सकते हैं, सुभाष बाबू जैसे सेनानी ही थे जिनसे पूरा ब्रिटिश एंपायर डरता था.