- माँ ही है ममता की मूरत, माँ ही दुर्गा भवानी है, सारे जगत की माँ ही महारानी है
नवरात्रि क्यों मनाते है?
नवरात्रि यह संस्कृत का शब्द है जो नव+रात्रि यह दो शब्दों को जोड़कर बना है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि का निर्माण हुआ था था, इसलिए इस दिन हिन्दू नववर्ष के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन को संवत्सरारंभ, गुडीपडवा, युगादी, वसंत ऋतु प्रारंभ दिन आदी नामों से भी जाना जाता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष मनाने के नैसर्गिक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक कारण हैं।
इन नों रातो तक माँ दुर्गा के नों रूपो की पूजा आराधना की जाती है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार नवरात्रि वर्ष में 4 बार पोष, चैत्र, शरद, एव आषाढ़ माह में आती है। ओर चारो माह में प्रतिपदा से लेकर नवमी तक नवरात्रि मनाने का नियम है।
नवरात्रि क्या है?
यह नवरात्रि हिन्दू धर्मावलम्बीओ के द्वारा मनाया जाने वाला मुख्य पर्व माना जाता है।
कम लोगों को ज्ञात होगा कि एक साल में नवरात्र के 4 बार पड़ते हैं। साल के प्रथम मास चैत्र में पहली नवरात्र होती है, फिर चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्र पड़ती है। इसके बाद अश्विन माह में प्रमुख शारदीय नवरात्र होती है। साल के अंत में माह में गुप्त नवरात्र होते हैं। इन सभी नवरात्रों का जिक्र देवी भागवत तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी किया गया है। हिंदी कैलेंडर के हिसाब से चैत्र माह से हिंदू नववर्ष की भी शुरुआत होती है, और इसी दिन से नवरात्र भी शुरू होते हैं, लेकिन सर्वविदित है कि चारों में चैत्र और शारदीय नवरात्र प्रमुख माने जाते हैं। एक साल में यह दो नवरात्र मनाए जाने के पीछे की वजह भी अलग-अलग तरह की है।
भारतीय पंचांग के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से मनाया जाता है. इसे नवसंवत्सर कहते हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे। इस सात दिन के सन्धान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है। यह दिन ग्रेगरी के कैलेण्डर के मुताबिक 5 सितम्बर से 5 अक्टूबर के बीच आता है। हिन्दुओं का नया साल चैत्र नव रात्रि के प्रथम दिन यानी गुड़ी पड़वा पर हर साल भारतीय पंचांग के अनुसार प्रथम मास का प्रथम चन्द्र दिवस नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह प्रायः 21 मार्च से 21 अप्रैल के बीच पड़ता है। ग्रन्थो में लिखा है कि जिस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने प्रवर्तित किया, उस दिन चैत्र शुदी 1 रविवार था। हमारे लिए आने वाला संवत्सर 2078 बहुत ही भाग्यशाली होगा, क्योंकि इस वर्ष भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रविवार है, शुदी एवम शुक्ल पक्ष एक ही है।
चैत्र नवरात्रि
नवरात्रि वह समय होता है जब दो ऋतुएँ मिलती हैं। संयोग की इस अवधि में, ब्रह्माण्ड से असीम शक्तियाँ ऊर्जा के रूप में हमारे पास पहुँचती हैं। हर साल दो नवरात्रि होती है चैत्र नवरात्रि और आश्विन नवरात्रि चैत्र नवरात्रि में गर्मी के मौसम की शुरुआत होती है और इस समय प्रकृति एक बड़े परिवर्तन के लिये तैयार होती है। भारत में, चैत्र नवरात्रि के दौरान, लोग उपवास रखकर, अपने शरीर को आने वाली गर्मी के लिए तैयार करते हैं।
प्रतिपदा : पहला दिन
1. पूजित देवी : शैलपुत्री
2. चढ़ाया जाने वाला प्रसाद : केले
3. रंग : इस दिन हरे रंग का महत्व होता है।
द्वितीया : दूसरा दिन
1. पूजित देवी : देवी ब्रह्मचारिणी
2. चढ़ाया जाने वाला प्रसाद : गाय के दूध से बना घी
3. रंग : इस दिन नीला रंग का महत्व होता है।
तृतीया : तीसरा दिन
1. पूजित देवी : देवी चंद्रघंटा
2. चढ़ाया जाने वाला प्रसाद : नमकीन मक्खन
3. रंग : इस दिन लाल रंग का महत्व होता है।
चतुर्थी : चौथा दिन
1. पूजित देवी : देवी कुष्मांडा
2. चढ़ाया जाने वाला प्रसाद : चीनी की मिठाई
3. रंग : इस दिन नारंगी रंग का महत्व होता है।
पंचमी : पाचवा दिन
1. पूजित देवी : देवी स्कंदमाता
2. चढ़ाया जाने वाला प्रसाद : चावल का हलवा/दूध
3. रंग : इस दिन पीले रंग का महत्व होता है।
षष्ठी : छटवा दिन
1. पूजित देवी : देवी कात्यायनी
2. चढ़ाया जाने वाला प्रसाद : मालपुआ
3. रंग : इस दिन नीले रंग का महत्व होता है।
सप्तमी : सातवा दिन
1. पूजित देवी : देवी कालरात्रि
2. चढ़ाया जाने वाला प्रसाद : शहद
3. रंग : इस दिन बैंगनी रंग का महत्व होता है।
अष्टमी : आठवा दिन
1. पूजित देवी : देवी महागौरी
2. चढ़ाया जाने वाला प्रसाद : गुड़, नारियल
3. रंग : इस दिन गुलाबी रंग का महत्व होता है।
नवमी : नोवा दिन
1. पूजित देवी : देवी सिद्धिदात्री
2. चढ़ाया जाने वाला प्रसाद : गेहूँ के आटे का हलवा
3. रंग : इस दिन सोनेरी रंग का महत्व होता है।